कविता संग्रह >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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चेतना के सप्त स्वर, मुखरित हुए है वेदना से।
दे सकें यदि प्रेरणा तो धन्य हूँ इस प्रेरणा से।।
वर्तमान समय में हम अपनी भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव तीव्र गति से हमारे ऊपर आरूढ़ होता जा रहा है।
परिणामस्वरूप पाश्चात्य सभ्यता की विष वल्लरी हमारे ही रक्त का शोषण करते हुए पल्लवित होकर हमें अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार के गर्त में डालकर शनैः-शनैः हमारी संस्कृति को समूल नष्ट कर रही है।
कवि ने प्रयास किया है कि प्रत्येक रचना में कुछ प्रेरणा पाठक को अवश्य मिले-
चेतना के सप्त स्वर,
मुखरित हुए है वेदना से।
दे सकें यदि प्रेरणा तो
धन्य हूँ इस प्रेरणा से।।
परिणामस्वरूप पाश्चात्य सभ्यता की विष वल्लरी हमारे ही रक्त का शोषण करते हुए पल्लवित होकर हमें अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार के गर्त में डालकर शनैः-शनैः हमारी संस्कृति को समूल नष्ट कर रही है।
कवि ने प्रयास किया है कि प्रत्येक रचना में कुछ प्रेरणा पाठक को अवश्य मिले-
चेतना के सप्त स्वर,
मुखरित हुए है वेदना से।
दे सकें यदि प्रेरणा तो
धन्य हूँ इस प्रेरणा से।।
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